कटनी /
उमरियापान स्थित बड़ी माई मंदिर कल्चरी राजाओं के कार्यकाल में दैवीय शक्ति से एक ही रात में बनकर तैयार हुआ था। सुबह होते ही लोगों को एक विशाल मंदिर बना मिला। मंदिर का निर्माण कब और कैसे हुआ इसे किसी ने नहीं देखा था। मंदिर में प्राचीनतम समय पुराने पत्थर और शिलालेख भी है। पूर्वजों और गांव के बुजुर्गों के बताते अनुसार दैवीय शक्ति से रातों रात बड़ी माई मंदिर बनकर तैयार हुआ है। पहले मंदिर के आसपास बहुत ही घनी झाड़ियां रही जंगली जानवरों के रहते लोगों को मंदिर पहुंचने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी। कई दशकों बाद श्रद्धालुओं ने धीरे - धीरे मंदिर का निर्माण कराया। बड़ी माई का मंदिर सदियों से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। पुष्पलता दुबे,तृप्ति दुबे, अनामिका दुबे, शालिनी मिश्रा ने बताया कि माता के दरबार में हाजिरी लगाने वाले भक्तों का पूरे सालभर आगमन लगा रहता है। नवरात्रि के दिनों में तो भक्तों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है। क्षेत्र के कल्याण सुख शांति - समृद्धि के लिए मंदिर में यज्ञ व धार्मिक अनुष्ठान भी भक्त कराते हैं। जवारे बोये जाते हैं। सुरेश त्रिपाठी, विभाष दुबे, सचिन दुबे, डाॅ. विन्धेश दुबे, पीताम्बर शुक्ला ने आगे बताया कि नवरात्रि के 9 दिन पूरे होने पर गांव में धूमधाम से जवारे का विसर्जन होता है। क्षेत्र व आसपास के क्षेत्रीय लोगों के द्वारा अठमाई,कन्या भोजन सहित अन्य धार्मिक अनुष्ठान कर आस्था के साथ बड़ी माई की पूजा करते हैं। मान्यता है कि बड़ी माई मंदिर में जो भी भक्त सच्चे मन से मन्नत के साथ हाजरी लगाकर मन्नत मांगता है मातारानी उनकी मनोकामना पूरी करती हैं।
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