मध्य प्रदेश जिला कटनी ब्लॉक ढ़ीमरखेड़ा उल्लेखनीय है कि रेत का अवैध उत्खनन ढीमरखेड़ा तहसील के अनेकों हिस्सों में किया जा रहा है। जिससे यह समस्या भयावह रूप ले चुकी है



कटनी -मध्य प्रदेश जिला कटनी ब्लॉक ढ़ीमरखेड़ा उल्लेखनीय है कि रेत का अवैध उत्खनन ढीमरखेड़ा तहसील के अनेकों हिस्सों में किया जा रहा है। जिससे यह समस्या भयावह रूप ले चुकी है। शासन द्वारा मात्र दो घाटों को रेत खनन की स्वीकृति दी गई है, लेकिन हकीकत यह है कि दर्जनों घाटों पर अवैध रूप उत्खनन हो रहा है। इसके लिए बड़ी-बड़ी मशीनें दिन-रात नदियों के तल को छलनी कर रही हैं। इस प्रक्रिया में न केवल प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हो रहा है, बल्कि जैव विविधता और पर्यावरण पर भी गंभीर खतरा मंडरा रहा है। खनिज विभाग ने ढीमरखेड़ा तहसील में रेत खनन के लिए केवल दो घाटों की अनुमति दी है,लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि दर्जनों घाटों से रेत माफिया खुलेआम अवैध उत्खनन कर रहे हैं। धनलक्ष्मी कंपनी ने ठेका लेने के बाद इसे पेटी ठेकेदारों को सौंप दिया है, जो अपने स्थानीय गुर्गों के जरिए घाटों पर रेत निकाल रहे हैं।




पोकलेन मशीन लगाकर नदी का सीना कर रहे छलनी

शारदा घाट में खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है।

माफियाओं के द्वारा दो – दो मशीनें चालू हैं कर नदियों के सीने को चीरकर कार्य किया जा रहा है। उल्लेखनीय हैं कि रेत निकालने के लिए नियमों के खिलाफ बड़ी-बड़ी मशीनों का उपयोग किया जा रहा है। इससे न केवल नदी तल का क्षरण हो रहा है, बल्कि आसपास की भूमि पर भी असर पड़ रहा है। ग्रामीण इलाकों में गहरी खाइयों का निर्माण हो गया है, जो दुर्घटनाओं को निमंत्रण दे रही हैं।


स्थानीय प्रशासन और खनिज विभाग इस समस्या पर पूरी तरह से मौन हैं।

यह आरोप है कि इन विभागों के अधिकारियों को नियमित रूप से रेत माफियाओं द्वारा भुगतान किया जाता है, जिससे उनकी मिलीभगत साफ झलकती है। ग्रामीणों की शिकायतों को अनदेखा कर दिया जाता है, जिससे उनका विश्वास प्रशासन पर से उठ गया है।

नदी तल का क्षरण और जलधारा का परिवर्तन

अत्यधिक रेत खनन से नदी तल गहराने लगता है, जिससे नदियों का प्राकृतिक प्रवाह प्रभावित होता है। इस बदलाव से न केवल जलीय जीवों का निवास स्थल नष्ट होता है, बल्कि बाढ़ और सूखे जैसी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं। रेत प्राकृतिक रूप से जल को संचित करने का कार्य करती है। लेकिन रेत के अत्यधिक खनन से भूजल स्तर में गिरावट आ रही है, जिससे आसपास के क्षेत्रों में पानी की किल्लत बढ़ रही है। रेत खनन से मछलियों और अन्य जलीय जीवों का प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहा है। इसके अलावा, नदी किनारे की वनस्पतियां भी समाप्त हो रही हैं, जिससे जैव विविधता पर गहरा असर पड़ रहा है। नदी तल पर अत्यधिक खनन से आसपास की भूमि कमजोर हो जाती है। इससे नदी किनारे की मिट्टी का कटाव बढ़ता है और भूमि के उपयोग के लिए उपयुक्तता घटती है।


रेत माफियाओं का दिख रहा क्षेत्र में डर

रेत माफियाओं के डर से ग्रामीण इनके खिलाफ कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पाते। जिनकी भूमि से जेसीबी, ट्रक और ट्रैक्टर गुजरते हैं, उन्हें मामूली किराया दिया जाता है। इस लालच के कारण ग्रामीण भी इनके कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करते। ग्रामीणों की शिकायतों को अनसुना कर दिया जाता है। प्रशासन का रवैया यह है कि रेत माफियाओं के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया जाता, जिससे ग्रामीणों की परेशानी और बढ़ जाती है। यदि किसी के द्वारा शिकायत की भी जाती है तो रेत माफियाओं के गुर्गो द्वारा उन्हें धमकी दी जाती है।


स्वीकृति कहीं और की उत्खनन हों रहा कहीं और

नियमों के अनुसार, रेत की खुदाई दो फीट से अधिक नहीं होनी चाहिए। लेकिन यहां रेत माफियाओं द्वारा भारी मशीनों के जरिए गहराई में पानी के अंदर से रेत निकाली जा रही है। इससे नदियों में बड़ी-बड़ी खाइयों का निर्माण हो गया है। रेत खनन करते समय पर्यावरणीय मानकों की पूरी तरह अनदेखी की जा रही है। नदियों के पास रहने वाले जीव-जंतुओं और पौधों के लिए यह स्थिति विनाशकारी साबित हो रही है। अवैध रूप से रेत का खनन होने के कारण जीव-जंतुओं की मौत भी हो रही है।


सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार हर विभाग में रेत-माफिया पहुंचाते हैं लक्ष्मी

रेत माफियाओं की पूरी सेटिंग प्रशासन और खनिज विभाग के साथ हो चुकी है। ऐसा कहा जाता है कि संबंधित अधिकारियों को नियमित रूप से रिश्वत दी जाती है, जिससे अवैध खनन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। अवैध खनन से सरकार को भारी राजस्व हानि हो रही है। सरकार द्वारा स्वीकृत घाटों से हटकर अन्य घाटों पर खनन किया जा रहा है, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान पहुंच रहा है। सवाल यह उठता है कि जब घाट में उत्खनन को पर्यावरण विभाग की अनुमति नहीं दी गई और घाट स्वीकृत नहीं है तो किन अधिकारियों के द्वारा सरंक्षण में रेत माफियओं के द्वारा दो-दो पोकलेन मशीन उतार दी गई।


रेत माफियाओं की गुंडागर्दी चढ़ रही परवान


अभी तत्कालिक मामला गूंडा का सामने निकल के आ रहा हैं जहां रेत माफियाओं ने एक व्यक्ति को उसके ग्राम से उठाकर ले आए । अब सोचा जा सकता है कि रेत माफियाओं के कितने हौसले बुलंद हैं ग्रामीणों को रेत माफियाओं से सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए ताकि वे बिना भय के अपनी शिकायतें दर्ज करा सकें। रेत का अवैध खनन न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है, बल्कि यह समाज और सरकार के लिए चिंता का विषय है। ढीमरखेड़ा तहसील में यह समस्या प्रशासन और खनिज विभाग की लापरवाही और माफियाओं की ताकतवर पकड़ का नतीजा है। जब तक सख्त कार्रवाई और पारदर्शी प्रणाली लागू नहीं की जाती, तब तक यह समस्या बनी रहेगी। रेत खनन से जुड़े पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। केवल तभी हम अपने प्राकृतिक संसाधनों और समाज को इस विनाशकारी गतिविधि से बचा सकते हैं।

बदमाश और सत्ताधारी दल के नेताओं का संरक्षण

विदित हो कि शारदा घाट सहित ढीमरखेड़ा तहसील अंतर्गत आने वाले दर्जनों घाटों को धनलक्ष्मी कंपनी के द्वारा पेटे ठेका में देकर प्रतिमाह 25 लाख रूपये की राशि दी जा रही है जहां पर 6 व्यक्तियों के द्वारा उक्त पेटा ठेका लिया गया है। इस अवैध कार्य को संचालित करने के लिये क्षेत्र के कुख्यात बदमाश एवं सत्ताधारी दल के कई नेताओं का संरक्षण गुर्गों को दिया गया है। जिस कारण से स्थानीय प्रशासन की हिमाकत नहीं हो पाती कि वह इनके विरूद्ध कोई कठोर कार्यवाही कर सके।

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