श्रीमद् भागवत कथा का समापन
कटनी -पहाड़ी निवार में पिछले एक सप्ताह से चल रही श्रीमद् भागवत कथा के समापन अवसर पर आयोजित हवन व पूजन के बाद भंडारे का आयोजन किया गया। इस दौरान कथा व्यास शेषमणि शास्त्री जी ने सात दिन तक चली कथा में भक्त को श्रीमद् भागवत कथा की महिमा बताई। उन्होंने लोगों से भक्ति मार्ग से जुड़ने और सत्कर्म करने को कहा। परम पूज्य शेषमणि शास्त्री ने कहा कि हवन - यज्ञ से वातावरण एवं वायुमंडल शुद्ध होने के साथ - साथ व्यक्ति को आत्मिक बल मिलता है। व्यक्ति में धार्मिक आस्था जागृत होती है। दुर्गुणों की बजाय सद्गुणों के द्वार खुलते हैं। यज्ञ से देवता प्रसन्न होकर मनवांक्षित फल प्रदान करते हैं। उन्होंने बताया कि भागवत कथा के श्रवण से व्यक्ति भव सागर से पार हो जाता है। श्रीमद् भागवत से जीव में भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य के भाव उत्पन्न होते हैं। इसके श्रवण मात्र से व्यक्ति के पाप पुण्य में बदल जाते हैं। विचारों में बदलाव होने पर व्यक्ति के आचरण में भी स्वयं बदलाव हो जाता है। उन्होंने कहा कि प्रसाद तीन अक्षर से मिलकर बना है। पहला प्र का अर्थ प्रभु दूसरा सा का अर्थ साक्षात व तीसरा द का अर्थ होता है दर्शन। जिसे हम प्रसाद कहते हैं। हर कथा या अनुष्ठान का तत्वसार होता है जो मन बुद्धि व चित को निर्मल करे देता है। मनुष्य शरीर भी भगवान का दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ प्रसाद है। जीवन में प्रसाद का अपमान करने से भगवान का अपमान होता है। भगवान का लगाए गए भोग का बचा हुआ शेष भाग मनुष्यों के लिए प्रसाद बन जाता है कथा समापन के दिन विधिविधान से पूजा करवाई। दोपहर तक हवन और भंडारा कराया गया पूजन के बाद दोपहर को भंडारा लगाकर प्रसाद बांटा गया इस दौरान धनीराम पाठक, नीरज पाठक, दीप्ति पाठक, सुरेश त्रिपाठी, विभाष दुबे, सचिन दुबे, तृप्ति दुबे,धनश्यम दुबे, विनायक दुबे आदि मौजूद रहे
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